Saturday, July 2, 2011

अंतरिक्ष की सैर

नभ के तारे कई देखकर
एक दिन बबलू बोला ।
अंतरिक्ष की सैर करें माँ
ले आ उड़न खटोला ।।


कितने प्यारे लगते हैं
ये आसमान के तारे ।
कौतूहल पैदा करते हैं
मन में रोज हमारे ।।




झिलमिल झिलमिल करते रहते
हर दिन हमें इशारे ।
रोज भेज देते हैं हम तक
किरणों के हरकारे ।।

कोई ग्रह तो होगा ऐसा
जिस पर होगी बस्ती ।
माँ, बच्चों के साथ वहाँ
मैं खूब करुँगा मस्ती ।।

वहाँ नये बच्चों से मिलकर
कितना सुख पाऊँगा ।
नये खेल सीखूँगा मैं,
कुछ उनको सिखलाऊँगा

सीख

वर्षा आई, बंदर भीगा,
लगा काँपने थर थर थर ।
बयां घोंसले से यूं बोली ­
भैया क्यों न बनाते घर ।।

गुस्से में भर बंदर कूदा,
पास घोंसले के आया ।
तार तार कर दिया घोंसला
बड़े जोर से चिल्लाया ।।

बेघर की हो भीगी चिड़िया,
दे बन्दर को सीख भली ।
मूरख को भी क्या समझाना,
यही सोच लाचार चली ।।

सीख उसे दो जो समझे भी,
जिसे जरूरत हो भरपूर ।
नादानों से दूरी अच्छी,
सदा कहावत है मशहूर ।।

जागरण

उठो सुबह, सूरज से पहले,
नित्य कर्म से निवृत हो लो ।
नित्य नहाओ ठण्डे जल से,
पढ़ने बैठो, पुस्तक खोलो ।।

करो नाश्ता, कपडे़ बदलो,
सही समय जाओ स्कूल ।
करो पढ़ाई खूब लगा मन,
इसमें करो न बिल्कुल भूल ।।

खेलो खेल शाम को प्रतिदिन
तन और मन होंगे बलवान।
ठीक समय से खाना खाओ,
फिर से पढ़ो, बढ़ाओ ज्ञान।।

द्वार प्रगति के खुल जायेंगे ,
करो हौंसला, लगन लगाओ।
लक्ष्य पास में ही पाओगे
बढ़ते जाओ, बढ़ते जाओ ।।

Thursday, June 30, 2011

बादल

सागर से गागर भर लाते
बादल काले-काले
लाते साथ हवा के घोड़े
दम-खम, फुर्ती वाले।



कभी खेत में, कभी बाग में
कभी गाँव में जाते
कहीं निकलते सहमे-सहमे
कहीं दहाड़ लगाते।


कहीं छिड़कते नन्‍हीं बूँदें
कहीं छमा-छम पानी
कहीं-कहीं सूखा रह जाता
जब करते नादानी।



जहाँ कहीं भी जाते बादल
मोर पपीहा गाते
सब के जीवन में खुशियों के
इन्‍द्रधनुष बिखराते।


बड़े प्‍यार से कहती धरती
आओ बादल आओ
तुम अपनी जल की गागर से
सबकी प्‍यास बुझाओ।

प्‍यारी नानी

कितनी प्‍यारी बूढ़ी नानी
हमें कहानी कहती है
जाते हम छुट्टी के दिन में
दूर गाँव वह रहती है।


उनके आँगन लगे हुए हैं
तुलसी और अमरूद, अनार
और पास में शिव का मंदिर
पूजा करतीं घंटे चार।


हमको देती दूध, मिठाई
पूड़ी खीर बनाती हैं
कभी शाम को नानी हमको
खेत दिखाकर लाती हैं।


कभी कभी हमको समझातीं
जब हम करते नादानी
पैसे देकर चीज दिलातीं
कितनी प्‍यारी हैं नानी।।

Friday, June 10, 2011

नया सवेरा लाना तुम

टिक टिक करती घड़ियाँ कहतीं
मूल्य समय का पहचानो
पल पल का उपयोग करो तुम
यह संदेश मेरा मानो ।


जो चलते हैं सदा, निरंतर
बाजी जीत वही पाते
और आलसी रहते पीछे
मन मसोस कर पछताते ।

कुछ भी नहीं असम्भव जग में
यदि मन में विश्वास अटल
शीश झुकायेंगे पर्वत भी
चरण धोयेगा सागर-जल ।

बहुत सो लिये अब तो जागो
नया सवेरा लाना तुम
फिर वह समय नहीं आता है
कभी भूल मत जाना तुम ।


- त्रिलोक सिंह ठकुरेला

ऐसा वर दो

भगवन् हमको ऐसा वर दो ।
जग के सारे सदगुण भर दो ।।

हम फूलों जैसे मुस्कायें
सब पर प्रेम-सुगंध लुटायें
हम पर-हित कर खुशी मनायें
ऐसे भाव हृदय में भर दो ।
भगवन् हमको ऐसा वर दो ।।

दीपक बनें, लड़े हम तम से
ज्योतिर्मय हो यह जग हम से
कभी न हम घबरायें गम से
तन-मन सबल हमारे कर दो ।
भगवन् हमको ऐसा वर दो ।।

सत्य मार्ग पर बढ़ते जायें
सबको ही सन्मार्ग दिखायें
सब मिलकर जीवन-फल पायें
ऐसे ज्ञान, बुद्धि से भर दो ।
भगवन् हमको ऐसा वर दो ।।


- त्रिलोक सिंह ठकुरेला