वर्षा आई, बंदर भीगा,
लगा काँपने थर थर थर ।
बयां घोंसले से यूं बोली
भैया क्यों न बनाते घर ।।
गुस्से में भर बंदर कूदा,
पास घोंसले के आया ।
तार तार कर दिया घोंसला
बड़े जोर से चिल्लाया ।।
बेघर की हो भीगी चिड़िया,
दे बन्दर को सीख भली ।
मूरख को भी क्या समझाना,
यही सोच लाचार चली ।।
सीख उसे दो जो समझे भी,
जिसे जरूरत हो भरपूर ।
नादानों से दूरी अच्छी,
सदा कहावत है मशहूर ।।
लगा काँपने थर थर थर ।
बयां घोंसले से यूं बोली
भैया क्यों न बनाते घर ।।
गुस्से में भर बंदर कूदा,
पास घोंसले के आया ।
तार तार कर दिया घोंसला
बड़े जोर से चिल्लाया ।।
बेघर की हो भीगी चिड़िया,
दे बन्दर को सीख भली ।
मूरख को भी क्या समझाना,
यही सोच लाचार चली ।।
सीख उसे दो जो समझे भी,
जिसे जरूरत हो भरपूर ।
नादानों से दूरी अच्छी,
सदा कहावत है मशहूर ।।
बहुत सुन्दर बाल कविता है।
ReplyDeleteडा० जगदीश व्योम