Friday, June 10, 2011

नया सवेरा लाना तुम

टिक टिक करती घड़ियाँ कहतीं
मूल्य समय का पहचानो
पल पल का उपयोग करो तुम
यह संदेश मेरा मानो ।


जो चलते हैं सदा, निरंतर
बाजी जीत वही पाते
और आलसी रहते पीछे
मन मसोस कर पछताते ।

कुछ भी नहीं असम्भव जग में
यदि मन में विश्वास अटल
शीश झुकायेंगे पर्वत भी
चरण धोयेगा सागर-जल ।

बहुत सो लिये अब तो जागो
नया सवेरा लाना तुम
फिर वह समय नहीं आता है
कभी भूल मत जाना तुम ।


- त्रिलोक सिंह ठकुरेला

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